Friday, July 15, 2016

रुका हुआ फ़ैसला


बरसों बाद वो ख़ुश हुई है। सालों से ठहरा हुआ, उसकी जिंदगी का कारवां आज फिर से सफ़र पे जो रवाना होने वाला है। ख़ुशियों ने राह भटक कर भी आख़िरकार उसके घर का पता ढूँढ़ ही लिया। तभी तो हमेशा एक नये शुरुआत की बात करने वाली घर की वो तमाम जुबाँ आज शर्मशार होकर ख़ामोश थी, सिवाय उसकी अम्मी की। क्योंकि इन बीतों सालों में अम्मी ही उसका हौसला और हमनवां बनकर हर कदम साथ रही है। जैसे घुप अंधरे में कोई जुगनू उसे राह दिखा रहा हो। ये मुकद्दर की एक मुकद्दश आजमाइश ही कहिये जो उसे पाँच साल उस शख्स से दूर रहना पड़ा, जिसे दुनिया में वो सबसे ज्यादा मोहब्बत करती है।
“असीरा चल न और कितनी देर लगाएगी, जुम्मन भाई कब से टैक्सी लाकर इंतज़ार कर रहे है। फिर आजकल कानपूर का मुज़ाफ़ात कितना मशरूफ हो गया है।“
“जी अम्मी, बस,बस आई”।
ये सिलसिला काफी देर से चल रहा था, अम्मी जान बुझकर बार-बार वक़्त की कमी का तगादा कर रही थी ताकि वो उसकी ख़ुशियों को दूर से महसूस सके वो जुबाँ जो हँसना भूल गई थी, वो चेहरा जिसकी  आईने से अन-बन कर हो चुकी थी, आज जिंदगी ने उसपर बहजत का टीका लगा दिया था। घंटो लगे थे, असीरा को सिर्फ़ राहील की पसंद की ड्रेस चुनने में। वो आज जी भर के सजना सवंरना चाहती थी, ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी कभी झुमके पहनती तो कभी उतारती, कभी जुल्फों को जुड़ों में गुथ लेती तो कभी यूँ ही खुले बादल की तरह कंधे के हवाले कर देती। दरअसल वो हु-ब-हु वैसा ही दिखना चाहती है जैसा पहली दफ़ा राहील ने उसे देखा था। जब वो अपने वालदेन के संग उसके घर पर तशरीफ़ लाया था।
बड़ी अफरा-तफरी सी मची थी उस दिन पूरे घर में, जिसे देखो सजने-सवरने में मशगूल था। जैसे वे लोग असीरा को नहीं उनको पसंद करने के लिए आ रहे है। और ये मोहतरमा अपनी अम्मीजान के साथ सुबह से गुसलखाने के कोने नाप रही थी। बिरयानी, मुर्ग शोरबा, मिर्च का सिलान, सवई और न जाने कितने तरह के लजीज ख़ुशबूओं से गुसलखान भर गया था लेकिन फिर भी उसकी अम्मी बार-बार कहती जैसे कुछ रह गया है।
कुछ घंटे भर बचे थे उनलोगों के आने में, उस वक़्त असीरा आईने से मुख़ातिब हुई और फिर जो सज कर राहील के सामने चाय लिए आई तो जनाब की आँखें फटी रह गई। खुदा की कारीगरी का बेहतरीन नमूना, जैसे किसी परीबानो का हुस्न उसके किस्मत को नज़र कर दिया गया हो। हलके-फुल्के पलों से शुरू हुई बातें रिश्ते के क़रार पर आकर थमी। एक महीने के भीतर राहील ने दबाब बना कर निकाह की रस्म भी अदाई करवा ली।
नज़रों की मुलाकात से शुरू हुआ सफ़र मोहब्बत की दहलीज पर आ खड़ा हुआ था। राहील ने पहली रात को अपना हाल–ए–दिल बयाँ मोहब्बत के इजहार से किया। वो खुद भी एक बेहतरीन शख्सियत का मालिक है, कानपुर में उसका एक रुतवा है।
असीरा को राहील से मोहब्बत होने में थोड़ा वक्त लगा था। तभी तो उस मोहब्बत के धागों का बंधन इतना मजबूत निकला की पाँच सालों का इंतज़ार और उस मोहब्बत पर तंज कसने वाली जुबान छोटी पड़ गई। अपनी पहली सालगिरह के दिन उम्र भर साथ-साथ चलने के वादे लिए हुए कदम जुदा हो गये थे। एक मोहब्बत फलने-फूलने से पहले वीरानगी में धकेल दी गई थी, सिर्फ़ इसलिए कि असीरा ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी। नहीं, बात इतनी नहीं थी। ये तो राहील के घर वालों की तरफ से गढ़ा गया एक बहाना था दरअसल राहील का निकाह असीरा से पहले साजिया से हुआ था। साजिया और राहिल आपसी समझोते पर अलग हुए थे मगर फिर भी साजिया और उसके घरवालों ने राहील को तंग करने के लिए उसपर मुकदमा दर्ज़ कर दिया और इस बात की ख़बर असीरा को अपने पहले सालगिरह के दिन हुई, जब कोतवाली से राहील के नाम से सम्मन और बुलावा आया।
वो राहील से खफ़ा होकर, उसी दिन अपने अम्मी के पास चली आई। उसे इस बात की तकलीफ़ नहीं थी वो उसकी दूसरी बीबी है, उसे ये खला की राहील ने सालभर उससे ये बात छुपाई रखी। और ये जायज भी था।
विश्वास और यकीं का नाम ही तो है मोहब्बत, और इस मोहब्बत के साथ वो राहील की जिंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा भी तो थी। उसे अपने अतीत के बारे में असीरा को पहले ही बता देना चाहिए था। कोतवाली से वापस आने के बाद राहील असीरा को घर पर नहीं पाया तो सब समझ गया, किन्तु उसकी हिम्मत नहीं हो पाई कि जाकर उसका सामना करे।
राहील के घर वालों ने उल्टा असीरा पर ही तोहमत लगा दिया की, जरुर इसी ने साजिया को चढ़ाया बढ़ाया होगा, अनपढ़ लोगों के पास दिमाग ही कितना होता है। लेकिन राहील ने अपने घरवालों की बातों से कभी इत्तेफ़ाक नहीं रखा। उसने हमेशा कोशिश की, असीरा से मिलकर उसे सारी बात बताये और उसे घर वापस ले आये मगर बात कचहरी तक पहुँच गई थी। साजिया से बिना कागज़ी तलाक़ लिए वो असीरा को अब घर नहीं ला सकता था। अलबत्ता कचहरी में कई बार पेशी हुई, लम्बी –लम्बी  जिरह हुयी परन्तु नतीज़ा वही रहा। कानून के सामने उसकी एक न चली। पुरे पाँच सालों तक साजिया के घरवालों ने मुकदमों में उसे फँसाये रखा, अभी कल की बात है जब मुकदमे का वो रुका हुआ फ़ैसला आया और राहील को साजिया से तलाक़ मिली।
राहील ने बरसों से जमा कर रहे हिम्मत को इकठ्ठा करके आसीरा फ़ोन किया और माफ़ी माँगते हुए कहा “आ जाओ बेग़म बेमतलब की जुदाई बहुत हुई, हर रोज तुम्हारी मोहब्बत और यादों में मैं यहाँ मरता रहा हूँ।“ इस एक फ़ोन कॉल ने असीरा के इंतज़ार को मुकव्वल कर दिया था। 

अम्मी ने जब फिर आवाज़ लगाई तो वहीँ पाँच साल पहले की सी सजी असीरा उनके सामने आ खड़ी हुई। जुम्मन भाई की टैक्सी में अम्मी के साथ वो अपने घर वापस जाते हुए, आँखों में ख़ुशी की आँसू लिए बहे जा रही थी और अम्मी उसकी पीठ सहला कर माथे चूम रही है।              

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