Saturday, November 15, 2014

अधूरे परे सपने ..!!

उड़ता ही जा रहा है
वो सारा नमक
जो तेरे आँखों के समुन्दर में था
वो सफ़ेद पानी का रंग भी
सुर्ख नीला हो रहा है
जो तेरे वफ़ा के झील में था
बस कुछ ज्यों का त्यों बचा है
वो नन्हीं छोटी सी मछलियाँ
जो तेरे यादों के तरह मेरे जेहन के एक्वेरियम में है
जिसे में रोज तेरे नाम का सदका करके
थोड़ा थोड़ा कर
इश्क और मुश्क के दाने खिलाता हूँ
शायद
इसलिए कि
कहीं ये भी जल्दी बड़ी न हो जाए
वरना नाहक ही मुझे
इनको भी समुन्दर में छोड़ना पड़ेगा
जैसे मैंने तुमको छोड़ा है
इस दुनिया के विशाल समुन्दर में
क्योंकि
तुमको बंदिश और छोटे से जेहन में रहने की आदत नहीं थी
और ना ही है
तुमको तो खुला आसमान चाहिए था
परिकथा वो फरों वाला पंख चाहिए था
जिसको लगा के
तुमको चाँद तारों के बस्ती में जाना था
जहाँ दूध की नदी बहती है
जमी का रंग सफ़ेद
और
आसमान का रंग गुलाबी होता है
जहाँ चारों पहर में नया सूरज उगता है
पेड़ पौधे खुशियाँ उपजाते है
ऐसे अंसख्य मासूम चाहत
जो कल्पना करके ही रोमांच जगाता है
जिसे मैंने सिर्फ
किताबों के में पढ़ा था
तुझे तो बस उसकी चाहत थी
मैं तो किताबी था
फ़िल्मी था
बस वही रह गया जो था
जिसके पास टाइटैनिक के जैक और रोज की मोहब्बत
एडम और ईव की चाहत के सपने थे
एक रेत का छोटा सा घरोंदा और एक छोटी सी कस्ती थी
जिसके सहारे तेरे संग दूर निकलना था
जो आज तेरी चाहत और सपने को
पूरा करते करते
न जाने कितने दूर निकल गये हैं
जिसे वापस आने का रास्ता नहीं मिल रहा है
जो चीख रहा है
रो रहा है
बिलक रहा है कि
कभी तुम चाँद सितारों की बस्ती से वापस आओ
और फिर
तुम और मैं
इस जमी पे अपने अधूरे परे सपने का
पूरा सा घरोंदा बनाये
जिसमें हम साथ मिलके रहें
मैं तेरे चाहत और सपने के लिए जियूं
और तुम मेरी  ... !!




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