Saturday, November 15, 2014

सब याद है कुछ भुला नहीं हूँ !!

साँझ सुबह
वो आवारा मस्ती
तेरे बातों में खो के
कभी चाँद के पार जाना
कभी हाँथ थामे
फिर वहीँ से वापस आना
सब याद है
कुछ भुला नहीं हूँ

मुझे याद है
तेरे गेसुओं का वो पल्ला
जहाँ से झाँक के
मैं तेरे दिल में उतरा करता था
होल से दबे पावँ
तेरे मुस्कान को वहां से चुरा के
तेरे लबों पे उतारा करता था
और फिर तू हँस के मुझको
बाँहों में भर लेती थी
सब याद है
कुछ भुला नहीं हूँ

मुझे याद है
तेरे आँखों की वो नमकीन शरारतें
जो किसी समुन्दर को खुद में
बसाये हुए थी
जिसके लहरों पे मैं अटखेलियाँ
खेला करता था
और तू मुझको खुद में उतार के
भिंगोया करती थी
सब याद है
कुछ भुला नहीं हूँ

मुझे याद है
तेरे वो भी मंजर
जिस वक़्त तू बहुत अकेली थी
तेरे हुज़ूर में बहने वाले हवाओं
में नमी थी
वक़्त बेवफ़ा और तकद्दीर तेरी
खफ़ा थी
ऐसे में मैं आया
तुझको संभाला गले से लगाया
और फिर तुमने यूँ ही संग रहने का
मुझसे वादा करवाया
सब याद है
कुछ भुला नहीं हूँ

मुझे याद है
कभी मेरे घर में
हम और तुम रहा करते थे
तेरे सपने मेरे ख़्वाब
हसींन पल बिताया करते थे
आज सब बिखर चूका है
तू दूर चली गई है
मुझसे परेशान हो गई है
न जाने तू किस सफर को निकली थी
किस सफर में खो गई है
खैर
तेरे संग होने पे भी
तेरी ही याद आती थी
तेरे संग न होने पे भी
तेरी ही याद आती है
तू भूल गई
मैं तेरी हूँ
तेरी ही रहूँगी
तेरा ये कहना पर मुझे
सब याद है
कुछ भुला नहीं हूँ ..!!

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