Tuesday, November 11, 2014

तू इश्क़ मेरे में नदी बन जा !!

तू इश्क़ मेरे में नदी बन जा बहने को समुन्दर तक
जो प्यास जगी है सीने में बुझ जाये फिर अंदर तक

न रह जाये पीर सीने में इश्क़ का तेरे मेरे अंदर तक
कुछ यूँ मिल के सुकून दे जाए तू दिल के अंदर तक

न कोई कस्ती ढूँढ़े हमदोनों फिर किसी मंजर तक
बाँहें थामे संग कुछ यूँ निकल जाये दूर अम्बर तक

तू इश्क़ मेरे में नदी बन जा बहने को समुन्दर तक
जो प्यास जगी है सीने में बुझ जाये फिर अंदर तक

No comments:

Post a Comment