Tuesday, October 7, 2014

आश्ना कभी, जो तेरे हसीँ बातों से थे हम !!

आश्ना कभी, जो तेरे हसीँ बातों से थे हम 
उल्फ़त में भी तभी मुर्दा जिन्दा से थे हम

वक़्त की बेरुखी पे आज जां शर्मिंदा से थे हम
तुझे यूँ देख न जाने कितना ज़िन्दा से थे हम 

तेरे मज़हवी चोले की रंगत से खफ़ा से थे हम 
शायद इसलिए सब में रह आज जुदा से थे हम 

न मानते इबादत न मानते खुदा को थे हम 
तुझसे मिल के जाना उनके जफ़ा से थे हम 

जब सारे मंजर खफ़ा थे फिर भी वफ़ा पे थे हम 
कभी एक-दूजे से दूर रहकर के भी पास से थे हम 

आश्ना कभी, जो तेरे हसीँ बातों से थे हम 
उल्फ़त में भी तभी मुर्दा जिन्दा से थे हम

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