Tuesday, October 7, 2014

समझा नहीं ..!!

उन्हें नहीं आना था तो 
मुलाकात इतना गहरा क्यों था 

मिलके मुझसे उनके चेहरे पे 
इतना सुर्ख सेहरा क्यों था 

मेरे मुफ्लिशी को मुझे भगाना था 
वो ख़ौफ़जदा क्यों था 

समझा नहीं एक नदी से दोस्ती कर 
समुंदर में वो खुश क्यों था 

चल छोड़ उसूल और शोहरत की बातें 
ये सुन के भी वो चुप क्यों था 

दिल में सुलह की ख़्वाहिशें लिए 
दूर जाने की चाहत में वो क्यों था 

समझा नहीं एक नदी से दोस्ती कर 
समुंदर में वो खुश क्यों था !!

आश्ना कभी, जो तेरे हसीँ बातों से थे हम !!

आश्ना कभी, जो तेरे हसीँ बातों से थे हम 
उल्फ़त में भी तभी मुर्दा जिन्दा से थे हम

वक़्त की बेरुखी पे आज जां शर्मिंदा से थे हम
तुझे यूँ देख न जाने कितना ज़िन्दा से थे हम 

तेरे मज़हवी चोले की रंगत से खफ़ा से थे हम 
शायद इसलिए सब में रह आज जुदा से थे हम 

न मानते इबादत न मानते खुदा को थे हम 
तुझसे मिल के जाना उनके जफ़ा से थे हम 

जब सारे मंजर खफ़ा थे फिर भी वफ़ा पे थे हम 
कभी एक-दूजे से दूर रहकर के भी पास से थे हम 

आश्ना कभी, जो तेरे हसीँ बातों से थे हम 
उल्फ़त में भी तभी मुर्दा जिन्दा से थे हम