Saturday, December 7, 2013

तेरा प्रेम और उस प्रेम का बिम्ब ...




तेरा प्रेम
और
उस प्रेम का बिम्ब,
अक्सर मेरे
यतार्थ के भावों से
ऊपर रहे है,
मैंने जब भी इन दोनों को
छूने कि कोशिश की,
मुझे कुछ और ही हाँथ लगे.
जैसे मैं किसी आईना में
खुद को देख रहा हूँ,
कभी सिंदूर बन तेरे टिके में
सज रहा हूँ,
तो कभी चुन्नी बन तेरी लाज
संभाल रहा हूँ,
ऐसे असंख्य भाव
जिसके छुअन ने मुझे
अलौकिक सा एहसास दिया है, अब तक
सोच रहा हूँ,
आज जिक्र कर डालू
उन सारे असंख्य भावों का
जिससे मेरा प्रेम सार्थक हुआ है,
और तू बिम्बों में परिभाषित हुई है,
पर आज ज़ेहन में याद मुझे
बस उस एक रात कि आ रही है,
जिस रात तूने
अपने अधीर साँसों की
मर्यादा तोड़ी थी
और मुझको
अपने बाँहपाश के फंदों में
जकड़ी थी,
उस वक़्त
व्याकुल तू थी या तेरे लब
जिसने मेरे माथे को चूमा था
तत्काल वो हरक़त
मैं समझ नहीं पाया था,
पर जब तेरे भाव विभोर चक्षु से
अश्रु के समान मोतियाँ गिड़ी
और लब खुल के
जो पुष्प से भाव उगले
जो मेरे भों और सीने को तनने का
और साथ ही मुझे आसमा कि ऊंचाई का
गर्व दिया
जिससे मुझे समझ आया
सच में
तेरा प्रेम और तू क्या है ?
हाँ मैं मूक हो गया था,
उस वक़्त
तेरा प्रेम का द्रवित लम्हा और स्वरूप देख कर
इसलिए आज इसे
परिभाषित कर रहा हूँ,
तेरा प्रेम
और
उस प्रेम के बिम्ब को
मेरा कद कभी माप नहीं सकता
बस ये कहूँगा,
तूने मुझे जो दिया है,
और जो दे रही हो,
उससे मैं अपना ह्रदय हाँथ में लेके
तेरे लिए
सदा यूँ ही खड़ा रहूँगा,
ताकि तू हर वक़्त मुझे यूँ ही छू सके
और मैं तुम्हें … 

7 comments:

  1. प्रेम अपरिभाषित ही अच्छा ...........

    ReplyDelete
    Replies
    1. कौशल लाल जी .. प्रेम को अपरिभाषित ही अच्छा कह के आप शायद प्रेम को परिभाषित कर रहे है .. धन्यवाद आपका !!

      Delete
    2. agar prem ko paribhashit karne lag jaaye to shayad kaagaj hi kam pad jaayege.. kyuki use paribhasit kiya hi nahi ja sakta... sundar rachna ke liye badahai..
      Please Share Your Views on My Website.. Thank You !

      Delete
  2. Replies
    1. आभार मदन मोहन सक्सेना जी !!

      Delete
  3. Bahut BAdhiya Sir...

    sunnymca.wordpress.com

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार जावा जी .. स्नेह बनाये रखे !!

      Delete