Friday, November 23, 2012

मिलती क्यूँ नहीं ... ?

हैवानियत के घिनोनी छत के निचे
क्यूँ रखी है इतनी टुकरों में भर के भूख की बोरियाँ,
मिलती क्यूँ नहीं हर एक को  
वो दाल की पानी गैहूँ की रोटियाँ, 


हम बन्दे वही है हम जात भी वही है 
जिस हर एक को रब रसूल ने बनाया
फिर किसी के हिस्से क्यूँ आई है
ये ऐस ओ आराम जिंदगी,
किसी के हिस्से गरीबी की गालियाँ,
मिलती क्यूँ नहीं हर एक को  
वो दाल की पानी गैहूँ की रोटियाँ,


बेबसी का बिछोना पेट का चोका बना है 
नींद माँ सी प्यारी धुप जल्लाद बाप बना है 
किया नहीं कोई भी गुनाह मैंने 
फिर भी न जाने क्यूँ लोगों को लगती है 
गुनाहों सी मेरी चाहत की सिसकियाँ,
मिलती क्यूँ नहीं हर एक को   वो दाल की पानी गैहूँ की रोटियाँ,

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