Friday, November 23, 2012

तन्हा नहीं हूँ में ..

कहने के लिए तन्हा  नहीं हूँ में .. क्यूंकि
मेरा घर शहर में है ..
जिंदा लाशों के कद्र नहीं जहाँ
उन मुर्दा भावनाओं के ढ़ेर में है,
रिश्ते नदारत है शाखों पे उल्लू बैठा के
ऐसे अग्निपथ के डगर में है,
कहने के लिए तन्हा  नहीं हूँ में .. क्यूंकि
मेरा घर शहर में है ..

रक्त-रंजित लथ-पत मेरी काया

पुकारती जिन अपनों को
वो भी खोये कानो से लगे हेड फ़ोनों की धुन में है,
में थक के बैठ चूका हूँ अब चंद भेरवों के पास
क्यूंकि आज बाकि वफ़ा की कद्र सिर्फ इनके दिल में है,
जेबों को खंगालती दुनिया बहुमंजिला सभ्यता से
बुजुर्गों के बदुआओ के गर्ग में है
कहने के लिए तन्हा  नहीं हूँ में .. क्यूंकि
मेरा घर शहर में है ...!!

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