Thursday, February 9, 2012

मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना ... !!




मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना,
उनके लफ़्ज़ों की हर खूबसूरती चुराके फिर आईने में तू सजना,
तेरे आँखों में भले ही काजल हो पर अपने होठों को मेरे रंग से ही रंगना,
कोई हवा आके छेड़े तेरे खुले गेसुओं को तो उनको मेरा नाम ले के रोकना,
रख कर मेरे चाहतों जुरा गेसुओं पे अपने ख्यालों से फिर उन्हें ढकना,

मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना ... 

कहीं तेरा आँचल अल्हर बनके सरके तेरे कांधों से तो उनको टोक देना,
ये हक उनका है ये कह कर बस आँचल को छोड़ देना,
थोड़ा शर्मा के गर जो बिंदिया बिखरने लगी तेरे माथे से,
तो उनको चाँद की ओर दिखा देना,
तोड़ लाना आसमा से उस चाँद को ओर फिर अपनी मांग को सजा लेना,
गर जो कहीं आसमा कुछ बोले तो उसको मेरा नाम बता देना,
रखना ख्याल मेरे आवारगी का तू सनम, ओर यूँ ही हमेसा बस  मेरे गजलों से सजना,

मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना,
उनके हर खूबसूरती चुराके लफ़्ज़ों से फिर आईने में तू सजना,

मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना ... !! 

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