Wednesday, November 16, 2011

चन्द अधूरे शब्द मेरे...... !!


चन्द अधूरे शब्द मेरे... वक़्त के उन पन्नो से मुझे पुकार रहे थे,
छोड़ा था जिसे कभी कुछ ना समझ कर,
आज वही मेरे भावनाओं से मिलकर मुझे रुला रहे थे !! 
अल्फाजों का डोर थामे शायद आज भी,
वो मेरा बनना चाहता था एक एहसास,
गुजरे पल में मुझे घसीट कर, मेरे साथ...
उन दर्द के बादलों में उड़ना चाहता था परवाज़,
पर शायद उनको ये पता नहीं मैंने दर्द के साथ जीना छोड़ दिया,
गुम होके सपनो में रातों को जगना छोड़ दिया,
पाके साथ ख़ुशी की पूरी,
मैंने जिन्दगी की अधूरी ख़ुशी छोड़ दिया,
अब तू भी छोड़ मुझको,
वरना तेरी अधूरी वजूद खोएगा तुझको,
चन्द अधूरे शब्द मेरे...
वक़्त के उन पन्नो से मुझे पुकार रहे थे,
छोड़ा था जिसे कभी कुछ ना समझ कर,
आज वही मेरे भावनाओं से मिलकर मुझे रुला रहे थे !! 

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